संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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शब्द ही भावनाओं का,
रखते हैं पूरा खयाल
पहुँचाते हैं मन मंदिर तक,
विचार और भावनाएँ।
ज़रूरी है शब्दों को सँभालना,
कभी दुखते ज़ख़्म पर
बन जाते हैं मरहम तो कभी,
तीखे तिर से भी बड़ा ज़ख़्म
दिल पर कर जाते हैं।
जोड़ते हैं और तोड़ते भी हैं,
नए-पुराने रिश्तों को
देखा जाए तो सारा विश्व सुंदर है,
लेकिन नज़र के साथ
नज़रिया भी वैसा चाहिए।
हर कही गई बात का,
एक अर्थ होता है केवल
ज़रूरत है उसे समझने की,
स्वार्थ को एक बार
त्यागकर तो देखो,
हर जगह प्रेम और
अपनत्व की भावना होगी।
कुछ चीजें भी वैसी ही हैं,
जैसी है वैसे उसे रहने दो
वे हमें दु:ख नहीं देती,
प्रेम देती है।
काँटे की तरह,
कोई तीखा काँटा
जानबूझकर
हमें दु:ख नहीं देता है।
जब तक हम खुद,
उस पर पाँव ना दें
हम दु:ख पाते हैं,
क्योंकि…
हमने इस पर पैर रखा है।
दु:ख हमसे ही आता है,
काँटे से परे होकर चलो।
बड़ा सुखद अनुभव होगा,
वही प्रेम की भावना होगी॥