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फ़र्ज़ निभाते रहो

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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इबादत की किश्तें चुकाते रहो,
इबादत में ही दिल लगाते रहो।

अपने मकसद को पाना है तो आप भी,
जान की अपने बाजी लगाते रहो।

रस्ते जीवन के आसां नहीं है मगर,
जिंदगी सबकी आसां बनाते रहो।

मोहब्बत इबादत का ही रूप है,
इस इबादत को दिल में बसाते रहो।

दीन-दुखियों की आवाज सुनो गौर से,
उनके जख्मों पे मरहम लगाते रहो।

बुरे कामों से दूरी बनाएं सदा,
ऐसे कामों से बचते-बचाते रहो।

बोझ ‘शाहीन’ पर फ़र्ज़ का बढ़ गया,
फ़र्ज़ को तुम खुशी से निभाते रहो॥