संजय जैन
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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छोड़कर गाँव को,
भूल गया सब-कुछ
छोड़कर आधी रोटी
पूरे के लिए शहर आ गया।
न अब आधी रही,
न ही पूरी मिली
न अब वहाँ का रहा,
न अब यहाँ का रहा।
दो पाटों में अब मैं,
पिसा जा रहा हूँ
यश आराम छोड़कर,
क्यों शहर में आ गया।
न अब रिश्ते बचे हैं,
न ही प्रेम-भाव अब रहा
एक इंसान अब चलती,
फिरती मशीन बन गया।
सिर्फ सोने को अब,
घर में आता जाता हूँ
कल के लिए आज को,
जी नहीं पा रहा।
गाँव में कितनी,
आत्मीयता रहती थी
शहर में तो इसका,
बहुत ही अभाव है।
छोड़कर शुद्ध जलवायु,
और ताजगी को क्यों
दोषित वातावरण में,
क्यों हम आ गए।
न खाने में कोई अब,
स्वाद ही बचा है
साथ-साथ खाने का,
अब कहाँ समय है।
कितने वर्ष बीत गए,
अपनों से बिछड़े हुए
जब से आए हैं हम,
शहर में रहने को।
दो मिनिट भी,
चैन से बैठ पाया नहीं
सोचता हूँ कि,क्यों,
छोड़कर गाँव को यहां आए।
अब तो स्वर्ग सिर्फ,
सुनकर ही अच्छा लगता है
पर स्वर्ग में अब कहाँ,
रहने को मिलता है।
गाँव से बड़कर स्वर्ग,
अब कहीं बचा नहीं है
इसलिए इंसानों को,
स्वर्ग नरक यहीं मिलाता है।
सच को अब हमें,
यही समझना है।
अपने जीवन का,
फैसला खुद ही लेना है॥
परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।