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बिन भावना सब सूना

वाणी वर्मा कर्ण
मोरंग(बिराट नगर)
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भावनाओं की जमीं पर ही,
प्रेम अंकुरित होता है
रिश्ते खिलते हैं,
धुन कहीं मुरली की
सुमधुर लगती है।
कहीं झरने,
खूबसूरत दिखते हैं
मदमस्त हवा,
खुशबू बिखेर जाती है
फूल खिलते हैं मगर,
भावना से ही सुंदर लगते हैं।
यूँ कहें एहसास है,
तो सब-कुछ है
रिश्ते हैं प्यार है,
खुशियाँ है गम है
दुनिया है,
अपने हैं पराए हैं
बिन भावना सब सूना,
क्या हो जब सिर्फ दिमाग हो
सिर्फ सोच हो विचार हो,
पर भावनाएं नहीं।

तब सब मशीन हो,
भावनाएं ही हमें
मानव बनाती है,
सुखद अनुभूति देती है
वस्तुओं से पृथक करती है।
विचार और भावना मिलकर ही,
एक संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करती है॥

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