डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
*************************************************
बात करने की
आदत सी है हमें,
अपने भावों को
आवाज़ देने की।
कला पाई है हमने
क्या करें बात करने,
के गुण को आत्मसात
किया है अपने कार्य में।
कभी-कभी लगता है,
बिन बात भी जब बात,
बन जाती है तो क्या
आवश्यकता है बात करने की ?
शायद चुप रहने की आदत नहीं है हमें,
बात करने से अगर बात बढ़ती है।
तो चुप रह कर दिखाऊँ!
फिर न कहना ये तो खलती है ?