राधा गोयल
नई दिल्ली
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राहत भी मिली, आफत भी मिली,
इसे अच्छा कहें या बुरा कहें
पहले गर्मी से बेहाल थे सब,
बेहाल किया अब बारिश ने।
गर्मी में भी जीना मुहाल था,
बारिश ने भी जीना मुहाल किया
घर-बार दुकानें और सड़कें,
बारिश की बाढ़ में समा गए
लाखों लोगों के अरमां भी,
बारिश के कहर में समा गए।
टूटे सपनों की किरचों को,
भीगी आँखों से देख रहे।
देखे ही क्यों थे ये सपने,
जो थे मिटने के लिए बने॥