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बीत रही ज़िंदगी

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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बीत रही ज़िंदगी उतार देखते रहे,
आने वाले समय का अंदाज देखते रहे
दिल की चाह बढ़ रही है जैसे-जैसे उम्र बढ़ी,
अपने इस मुक़ाम का बहाव देखते रहे।

मन ये कहे जी लो इसे देर न हो जाए कहीं,
बाद में क्या होने वाला ख़्वाब देखते रहे
अभी तो आँख ठीक है देख पा रहे हो तुम,
नहीं तो मोटे चश्मे वाला फ़ेस देखते रहे।

साथ भी अभी तो मिल ही जाता है मगर सुनो,
छड़ी का होगा साथ यही बात सोचते रहे
कान अभी ठीक हैं, सुनो तुम गीत मनपसंद,
नहीं तो अपने पापा की मशीन देखते रहे।

मस्त हो हँसो ज़रा ठहाके भी लगा लो तुम,
है आगे का सफ़र कठिन, अंजाम सोचते रहे
दोस्त जब बुलाएँ तो चले भी जाओ शौक़ से,
आज के बुजुर्गों का हम हाल देखते रहे।

सोच रहे हैं यही खड़े-खड़े इधर-उधर,
मन में सदैव अच्छी-अच्छी बात सोचते रहें।
मन की सोच का सदा होता है बहुत असर,
इसी लिए तो कहते अपनी सोच बदलते रहें॥