दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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कौन कहता है कि
कैकेयी बुरी थी,
अपना स्वार्थ सिद्ध करना
क्या बुरी बात है ?
हर कोई तो अपना
स्वार्थ सिद्ध करता है,
कैकेयी ने किया
तो क्या बुरा किया ?
हर माँ अपने बच्चों का
भला चाहती है,
कैकेयी ने अपना स्वार्थ
सिद्ध नहीं किया
लोगों को लगता है कि
वह स्वार्थी थी,
लेकिन नहीं
वो स्वार्थी नहीं,
परमार्थी थी।
अगर राम को
वन में जाने का,
आदेश न देती
तो वनवासियों का
कल्याण कैसे होता ?
तारण केवट का कैसे होता,
कैसे होता है शबरी का उद्धार ?
कैसे जटायु एक नारी के लिए
शहीद होते ?
कैसे होता है एक औरत पर,
बुरी नजर रखने वाले
बाली का वध ?
कैसे होती मित्रता,
राम और सुग्रीव की
कैसे होते इतने प्रसिद्ध
नल और नील!
कैसे राम नाम की,
महिमा गाई जाती!
कैसे एक साधारण भालू,
हनुमान को उनकी
शक्ति याद दिलाकर,
रीछराज जामवंत कहलाते
तब हनुमान, हनुमान न होकर
एक साधारण वानर ही रहते!
कैसे प्रेरणादायक होता,
एक गिलहरी का प्रयास।
तो सोचिए-विचारिए,
इस तरह का प्रयास
आप सब भी कीजिए,
बुराई में भी अच्छा ढूँढिए
कैकेयी को गाली मत दीजिए।
उसकी दूरदर्शिता को पहचानिए,
बुराई में भी अच्छाई ढूँढिए॥
परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।