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बैसाखी

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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“अब खा भी लो सुलभा,कल से तुमने कुछ भी नहीं खाया है.. तुम्हें इस तरह ख़ामोश देखकर मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता..क्या हुआ कल वेद का कॉल नहीं आया तो… आज आ जाएगा…! हो सकता है उसे ऑफ़िस में काम ज़्यादा होने के कारण समय ही न मिला हो… पर तुम हो कि दिल से लगा लेती हो..!” सोफ़े पर शांत बैठी पत्नी से सक्सेना जी खाना खाने के लिए लगातार कई बार मनुहार करते हुए बोले।
पत्नी की कोई प्रतिक्रिया न देखकर उन्होंने पुनः कहा -“वेद को अमेरिका भेजने का निर्णय भी तुम्हारा ही था,मैं तो इसके बिल्कुल ही खिलाफ़ था…। अकेला बेटा है,इस शहर में नहीं तो कम से कम इस देश में ही रहता.. पर नहीं.. तुम ही उठते- बैठते कहती रहती थीं कि,मेरी बहन मेधा का बेटा जर्मनी में है,और मेरे भैया का बेटा अमेरिका में है.. हम भी वेद को पढ़ने के लिए विदेश भेजेंगे…। और जब उसे हमने भेज ही दिया है.. तो अपने मन को समझा क्यों नहीं लेती कि अब बेटे का फ़ोन हमारे हिसाब से नहीं,उसके इरादों के हिसाब से आएगा.. ,क्योंकि अब वो वहाँ नौकरी भी करने लगा है,और अब तो उसने वहाँ की नागरिकता भी ले ली है.. अब वो हमारी पहुँच से दूर हो गया है..सुलभा…! वैसे सच कहूँ श्रीमती जी,कभी-कभी हमारी उच्च आकांक्षाएं ही हमारे दुःख की वज़ह बन जाती है ….!” कहते हुए सक्सेना जी ने अपने चेहरे पर मुस्कान समेटी और पत्नी के गालों को स्नेह से थपथपा दिया..। सुलभा की आँखें सुर्ख़ लाल हो चुकीं थीं.. और वो न जाने क्या सोचते हुए बार-बार लंबी गहरी श्वांस ले रही थी…।
ये देख सक्सेना जी ने पत्नी के कंधों पर अपना हाथ रखते हुए कहा-“मैं समझ सकता हूँ तुम्हारे मन की उथल-पुथल को.. तुमने तो दिन में बेटे के एक बार के वीडियो कॉलिंग को ही अपने जीने का सहारा बना लिया है.. और तुम्हारी तकलीफ़ स्वाभाविक भी है.. पर तुम ये क्यों भूल जाती हो श्रीमती जी कि बुढ़ापे में हम ही एक-दूसरे की बैसाखी हैं…और जब तुम ही कमज़ोर हो जाओगी तो मेरा क्या होगा !” पति का ऐसा कहना था कि, सुलभा उनके कंधों पर सिर रखकर फूट-फूट कर रोने लगी..।
तुरन्त सक्सेना जी ने बड़ी अधीरता के साथ अपने नौकर को पुकारा -“अजय बेटा,माँ को तेरे हाथों की अदरक वाली चाय पसंद है न.. ज़ल्दी से ३ कप बना कर ला…। आज हम लोग तीनों पारले जी के साथ चाय पीएंगे…।” ये सुनकर सुलभा ने रोते-रोते बाल सुलभ मुस्कान के साथ पति का हाथ थाम लिया।

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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