डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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भक्ति प्रीति संगम मधुर, मुरली सुर उद्भान।
मिली राधिका प्रेम मन, मीरा भक्ति सुगान॥
खिली प्रीति मन माधवी, चढ़ा बाँसुरी रंग।
राधा रानी प्रेम रस, मीरा भक्ति तरंग॥
रोम-रोम वंशी ध्वनित, पंचम सुर नवताल।
सखी राधिका कृष्णमय, मीरा मन ख़ुशहाल॥
ललित राग अनुराग मन, मुरली मोहन श्याम।
गोरी राधा प्रेमिका, मीरा नटवर नाम॥
प्रेम भक्ति सरिता बहे, राधा मीरा प्रीत।
लीलाधर मुरली अधर, मीत गीत नवनीत॥
धन्य भक्ति संगम प्रणय, बंशीधर घनश्याम।
मनमोहन राधा हृदय, चरणन लीला वाम॥
महक रही चित्रावली, सुर लय यति ध्वनि मान।
बजे मधुर संगीत स्वर, मुरली मुख भगवान॥
मीरा गिरिधर की हुई, सप्तसिन्धु अवगाह।
राधा माधव एक ही, शक्ति ब्रह्म सम्वाह॥
तन मन धन माधव चरण, अर्पण मीरा भक्ति।
गोरी बरसाना धिया, मन मुकुन्द हिय शक्ति॥
वासुदेव मधुवन मधुर, मधुकान्त मधुपान।
राधा माधव मधुप मन, मीरा प्रिय भगवान॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक) में, जबकि स्थाई पता दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद) है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली, बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी (गाजि़याबाद-उप्र) से है। शिक्षा एम.ए. (हिन्दी, संस्कृत, इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा-भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज-वैयाकरण झा (सह कवि स्व.पं. शिव शंकर झा) और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन, मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-“स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान। जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान। हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥”