प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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दिन में नभ में सारे तारे नहीं दिखते,
ऐसा नहीं है कि तारे नहीं होते
अज्ञान की दशा में ईश्वर नहीं दिखते,
ऐसा नहीं है कि ईश्वर नहीं होते।
दुर्लभ मनुज-देह प्रभु-मिलन जतन नहीं,
जन्म तेरा व्यर्थ अरे! बहुत बड़ा सच है ये।
तेरी भावना जैसी प्रभु से वो पाता है,
प्रभु भये कल्पतरु बहुत बड़ा सच है ये।
टूटू-टूट प्रेम करके भक्ति धन मांग ले तू,
झूठे दंभ में फंस क्यूं शरन में नहीं होते…॥
एक तराजू लेकर संसार आना हुआ,
एक पलड़ा विद्या का दूसरा अविद्या है।
मुक्ति पथ पार करें बैठ विद्या पलड़े में,
बैठ फंसे संसार पलड़ा वो अविद्या है।
एक पलड़ा संसार, दूसरा पलड़ा ईश्वर,
सावधान सदा हम क्यूं चयन में नहीं होते…॥
उस एक ईश्वर को जान ले तू इस जग में,
सब जान जाएगा उनकी कृपा से प्यारे तू।
ईश्वर है एक अंक हम सब हैं शून्य अंक,
एक के पीछे लग कर मूल्यवान प्यारे तू।
दृढ़ निश्चय करके सब ईश्वर की ओर बढ़ो,
जीव-जगत रमना क्यूं भजन में नहीं होते…॥
प्राचीन ऋषि-मुनि संसार त्यजते थे,
क्योंकि प्राप्ति भगवद् सबसे अहम् है जी।
पा-पा के छोड़ दिया सारा सुख भक्तों ने,
भगवान की कृपा से सब कुछ संभव है जी।
जगत के मुसाफिर तेरा ठिकाना प्रभु चरनन,
त्याग मोह-माया क्यूं चरन में नहीं होते…॥
तेरा ठिकाना पक्का प्रभु चरण में बन जाए,
निश्चिंत घूमेगा भव सागर ठसक में तू।
संसार है विदेश ईश्वर हैं अपना
देश,
अपने को छोड़ पराए की है चसक में तू।
निर्भय कर कर्म भक्त पाएं विश्राम प्रभु में,
जग सोचे विष पी क्यूं मरन में नहीं होते…॥
चूहा बन के फंसता है माया चूहेदानी में,
ढूंढता सुख के चावल दिन रैन भटक-भटक।
घुट-घुट के मरता है सुख-दुःख चक्र में तू,
हाल हो बेहाल बड़ा मौत हो जब निकट-निकट।
सुख के सागर प्रभु जी जन्म-मरण छूट जाए,
काट फंद माया क्यूं तरन में नहीं होते…॥
ईश्वर की भक्ति ही सारवान इस जग में,
मूल्यवान समय वही कटे जो प्रभु- सिमरन।
अपने सुख-दु:ख कर्म ईश्वर से जोड़ नहीं,
प्रेम से भुगत उनको सौंप प्रभु को तन, मन, धन।
रूदन करो प्रभु-मिलन साधन भक्ति को बना,
चित्त हेत धर प्रभु क्यूं लगन में नहीं होते…॥
