प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
*************************************************
भगवद-भजन, नाम, जप, सुमिरन,
कोई भी दुःख नहीं लवलेश,
अन्य कर्म सुख-दुःख से जुड़,
भव आवाजाही करें निवेश।
प्रभु बंधें प्रति पल सुमिरन से,
भक्त की महिमा नित्य बढ़ाएं।
उपजें आप वचन बन मुख से,
जगत को जीवन-सार बताऐं।
उनकी भक्ति नहीं बढ़ पाती,
प्रिय शरीर हर सुख प्रवेश…॥
ब्रह्म-बोध हो प्रभु चरनन में,
स्वयं कृपा कर होते उजागर।
हर तन भीतर आत्म रूप में,
एकनिष्ठ भर ज्ञान की गागर।
भोग नियंत्रित चित बैरागी,
नित पुकार श्रद्धा करुणेश…॥
कुछ हैं भक्त जन त्यागी ऐसे,
हर कारज में त्याग झलकता।
भोग सभी हैं वमन-विष जैसे,
जाके लिए न स्नेह छलकता।
भक्त परम पद वे ही पाते,
ज्ञात देह धारण उद्देश्य…॥
कोई योग ज्ञान नहीं इच्छित,
भक्ति मार्ग में जिसने चलना।
सारा दर्शन-ज्ञान प्रकाशित,
आकर स्वयं प्रभु ने मिलना।
सुख में नाम रटन न छूटे,
दुःख जपो मन दे निर्देश…॥
जिसको निरंतर ध्यान प्रभु का,
उसका भजन प्रभु जी हैं करते।
जिसने स्वयं को सौंपा उनको,
खुद का दान प्रभु जी भी करते।
अति उदार हैं भक्त परायण,
भक्त-दास बनते अखिलेश…॥
भगवद-भजन, नाम, जप, सुमिरन,
कोई भी दुख नहीं लवलेश।
अन्य कर्म सुख-दुःख से जुड़,
भव आवाजाही करें निवेश…॥
(इक दृष्टि इधर भी:लवलेश=अत्यंत अल्प मात्रा)