हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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भगवान दिलों में रहते हैं, हर दिल से प्रेम करते हैं।
इन्सान मगर भगवान का, घर भी ना साफ रखते हैं॥
दुनिया न बिना उनके सजती, रहता है वास कण-कण में,
फिर भी न दिखें वो जीवन को, रहकर हर एक ही क्षण में।
क्यों सूर्य किरण दिन भर रहती, फिर चन्दा की किरण सजती,
इन्सान मगर भगवान का घर भी ना साफ रखते हैं।
भगवान दिलों में रहते हैं…॥
अंधियार किरण से ही मिटता, दुनिया इस बात को जाने,
हर एक पहर किरणें रहतीं, सब ऐसी बात तो माने।
है कौन भला वो क्षण कह दो, जब सूरज-चंदा नहीं रहते,
इन्सान मगर भगवान का घर भी साफ ना रखते हैं।
भगवान दिलों में रहते हैं…॥
जीवन न कभी इस धरती में, आता माता-पिता के बिन,
पालन जो करें हर जीवन का, आशीषों से रचें जीवन।
जीवन न समझ पाते लेकिन, वो दाता हैं विधाता हैं,
इन्सान मगर भगवान का घर भी साफ ना रखते हैं।
भगवान दिलों में रहते हैं…॥
परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।