प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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भजन की भूख प्रभु मिलन की लाग लगे,
बिरला जनम उनका बिरला ही भाग जगे।
धन-पद नहीं है शाश्वत ना उनके मालिक अमर,
नाम-कमाई प्रभु साथ ना संबंधी सगे।
दरशन-श्रवण में जिसके हर पल बसे हैं प्रभु,
वाणी विराजें प्रभु शब्द-शब्द मधुरस पगे।
मैं-मैं रट बात-बात में मिट जाए हरि भजन से,
भक्त-हरि एकरूप हर भव बाधा यूँ ही भगे।
चाहे जितना ज्ञान तुझे सतगुरु, शास्त्रों के वचन चल।
चिदानंद रूप वही पढ़-सुन के ना माया ठगे।
भजन की भूख प्रभु मिलन की लाग लगे,
बिरला जनम उनका बिरला ही भाग जगे॥