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भज मन रघुवर

सरोज प्रजापति ‘सरोज’
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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भज मन रघुवर, भज मन सिय वर,
भज त्रिभुवन पति, बुजदिल मनवा।

कण-कण हरि-हरि, बिन सदगुरु पथ,
सुमिरन पल हरि, रट-रट रसना।

तिमिर गहन प्रभु, विनय सहित प्रभु,
अनुनय कर हम, हरि शरण पड़े।

अनगिनत विचित्र, हिय बिन सुमिरन,
मनुज बिन भजन, पल-पल फिसले।

सरवर बिन जल, रघुवर बिन मन,
असहज सहृदय, अवसर सुध लें।

पितु-मातु ऋण धरि, रघुकुल पुर तजि,
विपिन-विपिन फिर, पितृ चलन चले।

ऋषि-मुनि प्रमुदित, चरण सगुण धर,
जटिल प्रज्ञिल दिय, धनुष धनु धरें।

असुर असुरक्षित, भ्रमित भ्रमित फिर,
गिन-गिन चुन-चुन, असुर सब मरे।

जनक तनय सह, लखन अनुज सह,
तृण कुटिय रचित, रघुवर विकसे।

सह लखन अनुज, रघुपति अतिशय,
दलन रण दनुज, कुल सह मिटाए।

सिय कमलनयन, खिदमत सुखकर,
जगत गुन अमिट, सरस रस भरे।

झिलमिल-झिलमिल, अनहद- अनहद,
मिल-जुल मिल-जुल, युगल छवि सजे॥

परिचय-सरोज कुमारी लेखन संसार में सरोज प्रजापति ‘सरोज’ नाम से जानी जाती हैं। २० सितम्बर (१९८०) को हिमाचल प्रदेश में जन्मीं और वर्तमान में स्थाई निवास जिला मण्डी (हिमाचल प्रदेश) है। इनको हिन्दी भाषा का ज्ञान है। लेखन विधा-पद्य-गद्य है। परास्नातक तक शिक्षित व नौकरी करती हैं। ‘सरोज’ के पसंदीदा हिन्दी लेखक- मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और महादेवी वर्मा हैं। जीवन लक्ष्य-लेखन ही है।