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भविष्य जगत का

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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नारी कितनी यातना सह,
जगत का भविष्य रचती है
कभी-कभी यह देख मुझे,
करुणा-सी हो जाती है।

पुरुष भाग क्षण भर है,
सच पूछो जगत-सृष्टि में
नारी ही तो सह यातना,
सफल यज्ञ पूर्ण करने में।

नारी है वह महासेतु,
जिस पर अदृश्य चलता है
नव मनुष्य, नव प्राण दृश्य की,
संरचना वह करता है।

नारी का ही उदर कोष्ठ,
जहाँ बढ़ता वह चेतन है
सुखद कक्ष वह शिशु का,
मिलता जहाँ ज्ञान प्रतिक्षण है।

प्रसव वेदना सह कर,
सन्तति असंग जनती है
वह नारी का ही साहस है जो,
यह कार्य सहर्ष करती है।

शैशव को सहलाती पल-पल,
बड़ा उसे करती है।
अच्छी से अच्छी शिक्षा दे,
मानव वह गढ़ती है॥