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भव भूल भुला दो शिव शंभो

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी
सहारनपुर (उप्र)
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भव भूल भुला दो शिव शंभो,
भव भूल भुला दो शिव शंभो।

अपने कर्मों के कारण से,
कष्टों में माँ के गर्भ रही
हो मौन निरंतर दुःख सहे,
तुमको न भजा
तुमको न भजा,
मलमूत्र शयन हो मूक प्रभो,
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

बचपन में रोई कण्ठ रूंधा,
तब माँ ने आकर दुग्ध दिया
क्रमशः शरीर जब पुष्ट हुआ,
तुमको न भजा
तुमको न भजा,
रहते शरीर बन प्राण प्रभो,
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

यौवन के प्रकट होते ही मन,
भोगों में लिप्त हो जा बैठा
सुख-भोग वंश-वृद्धि में रत,
तुमको न भजा
तुमको न भजा,
भोगों में हरण विवेक प्रभो,
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

स्मरण किया न जीवन भर,
अभिमान-मान रक्षा में रही
सब जीवन व्यर्थ प्रपंचों में,
तुमको न भजा
तुमको न भजा,
अब थोड़ी आयु शेष प्रभो,
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

प्रौढ़ावस्था, वृद्धावस्था,
मुँह बाहे खड़ी है परमेश्वर
हर इंद्री क्षमता घटने लगी,
तुमको न भजा
तुमको न भजा,
क्षण व्यर्थ न जाने पाए प्रभो,
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

इस देह-त्याग से पूर्व शिवे,
एकांत-मीत मेरे बन जाओ
मन में ये भाव न रह जाए,
तुमको न भजा
तुमको ना भजा,
तुममें रम जाए चित्त प्रभो,
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

ले मंगल-दीप सवेरे शिव,
करती हूँ भाव-भजन नत हो
इस‌ मन-क्लेश को दूर करो,
तुमको न भजा
तुमको न भजा,
करती अर्पण सर्वस्व प्रभो
हे! जगदीश्वर हे! जगत विभो।

भव भूल भुला दो शिव शंभो,
भव भूल भुला दो शिव शंभो॥