डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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भाई बहिना पर्व मधुरतम, भ्रातृद्वितीया आज मनायें
पर्व सनातन धर्म स्वस्ति शुभ, स्नेहिल रीति समाज सजायें।
मानसरोवर प्रेम क्षीर जल, अवगाहन आनंद समझ लें
भाई-बहना है हर्षित मन, रिश्तों की खुशबू महकायें।
कच्चा धागा समझ प्रेम का, पक्का धागा प्रीत बनायें
बहिना भाई मिलन सहोदर, अपनापन नवनीत बनायें।
रिश्ता ममता बहिन भाई को, जीवन का उपहार समझ लें
शतंजीव आरोग्य भाई हो, बहना रक्षा भार उठायें।
यम यमुना भाई-बहन का, अतुल सहोदर पर्व मनायें
वचन लिया यमराज यमी से, भाई सुख यश गेय बनाये।
शुक्ल पक्ष दिनांक द्वितीया, पावन कार्तिक मास समझ लें
भाई दूज स्नेह परस्पर भाई-बहन सम्मान समझ लें।
चित्रगुप्त महाराज वन्दना, पूजन वेद विधान करायें
पाप पुण्य गणना कलम सृजन, जन्म मृत्यु गणदेव मनाये।
ममता हिय वात्सल्य ललित मन, बहन भाव भरपूर समझ लें
कोहिनूर भाई के माथे, अक्षत चंदन तिलक लगायें।
फल मेवा मिष्टान्न परोसे, भरी नेह मुख हास निहारे,
बहना प्रमुदित भाई सुवासित, भोजन बहु स्वादिष्ट कराये।
कवि ‘निकुंज’ पुलकित अन्तर्मन, पा बहना का नेह समझ लें।
अतुल प्रेम अपनापन बहना, ममतांचल सुख भाई समझ लें॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥
