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भारत भू के कर्णधार

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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सरहद प्रहरी सैनिक कुमार,मेरे उपवन की नव बहार,
भारत माता के शांति दूत,हे भारत भू के कर्णधार।

उत्थान-पतन से दूर रहो,भौतिक सुख की ना चाह रखो,
तुम सैनिक सदा जटिल पथ के,हरदम दुगना उत्साह रखो।
टिक सके न सम्मुख कोई भी,तुम रण सज्जित हो बार-बार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

क्या चिंता कुपित दृष्टि की है,जो डाल सके तुम पर दुश्मन,
केवल रण भेरी याद रखो,तोपों के स्वर में सदा मगन।
सुख मृग तृष्णा से दूर रहो,रक्षण में सारे सुख बिसार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

ढह जाएं समोनत स्वर्ण भवन,गौरव सिंघासन राष्ट्र सबल,
जब दुश्मन का संहार करो,वह जाते सम्मुख राष्ट्र प्रबल।
नभ में रहकर भू को मापो,तप कर्म तुम्हारा निर्विकार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

पर्वत की छाती पर चढ़कर,तुम पथ पर बढ़ते जाते हो,
सागर की लहरों के ऊपर,अविचल साहस दिखलाते हो।
नदियों की धारा चीर-चीर,करते बाधा को आर-पार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

तुम्हें नहीं डरा सकता कोई,गोलों के जटिल प्रहारों से,
तुम्हें नहीं हटा सकता पीछे,शस्त्रों-अस्त्रों के वारों से
मानवता के जो दुश्मन हैं,तुम करते हो उनका शिकार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

चंडी का खप्पर भरते हो,शत्रु शोणित की हाला से,
दुर्गम पथ पर अड़ जाते हो,राणा के सैनिक झाला से।
तुम काल बनो आतंकों के,सुनते हो पीड़ित की पुकार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

भारत माता की सेवा में,यौवन के सुख का लोभ नहीं,
दुर्गम पथ का ना पछतावा,अपने निर्णय पर क्षोभ नहीं।
तुम भारत भू के गौरव हो, ‘हलधर’ लेखन के सूत्रधार,
हे भारत भू के कर्णधार…॥

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