बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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भीगी पलकें सुना रही है,
एक अनकही मौन कहानी।
आँखों में शबनम की बूँदें,
लगती प्यारी देख सुहानी॥
सपनों का अंबार लगा है,
चैन नहीं मिलता है इनको।
खोई रहती है यादों में,
हृदय बसा कर रखती जिनको॥
अश्क सँजोए रखती हरदम,
पिय की सुंदर प्रेम निशानी।
आँखों में शबनम की बूँदें…॥
जता रही है प्रेम उसी से,
निर्मल स्वच्छ हृदय को पावन।
अँसुवन बहती गंगा धारा,
नेह छलकती है मनभावन॥
प्रीत बिना दुनिया का मेला,
भाय नहीं अब प्रेम कहानी।
आँखों में शबनम की बूँदें…॥
मन को बहलाना चाहूँ मैं,
चंचल मन अब तो ना माने।
क्या होगा साजन बिन सजनी,
प्रीत बनाने वाला जाने॥
कोई कैसे इसको समझे,
मैं तो हूँ उसकी दीवानी।
आँखों में शबनम की बूँदें…॥