सौ. निशा बुधे झा ‘निशामन’
जयपुर (राजस्थान)
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ये गुलाबी ठंड आने को है,
दस्तक हवाओं में हैं
स्वागत को आतुर नर और नारी,
दीप जल रहे जैसे हर ओर।
झिलमिलाती डगर-डगर,
देखो सजे-धजे हर शहर
रौनक बाजारों की कहे-
निशामन आ गई।
देखो-देखो वो गुलाबी ठंड,
महक उठे गोदावरी के फूल
विंटर जैस्मिन कह रहा,-
मैं आ गया लेकर बसंत बहार।
ये देख हरी-भरी तरकारी बोली,
मैं भी हूँ इस ओर सजी-सँवरी
आ रही रंगभरी गाजर-मूली,
पालक और मैथी भी जिद कर खड़ी बोली।
मक्का और गन्ना गाँठ बांध
चले हर घर-द्वार,
मैं लो आया लेकर नया साल
खुशियाँ मना लो सब,
जाने दो पुरानी बात।
भौरी भोली ठंड देख,
आ गई वो!
फिर गुलाबी ठंड,
आ गई गुलाबी ठंड॥