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भ्रष्टाचार की बलिहारी…

हरिहर सिंह चौहान
इन्दौर (मध्यप्रदेश )
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खुलेआम लूट रहे पराऐ माल को,
लुटेरे बन यह जनता के सेवक
लालच कम नहीं होता है इनका,
भ्रष्टाचार की बलिहारी बढ़ रही है…।

‘टेबल’ के नीचे से खर्चा-पानी,
आज-कल खुलेआम नहीं आनलाइन
ले रहे हैं भ्रष्टाचार का माल,
क्योंकि भ्रष्टाचार की बलिहारी बढ़ रही है…।

बिना रिश्वत ये तो अपनी क़लम नहीं उठाते,
एक साइन की यहाँ लाखों कीमत लेते हैं
और दिखावे हेतु इन्हें जनसेवक पुरस्कार मिलता है,
तभी तो भ्रष्टाचार की बलिहारी बढ़ रही है…।

आज-कल तो कदम-कदम पर माया-मोह है,
बिना पैसे लिए तो यहाँ आदमी का मृत शरीर ना दे
लालच इन चार पैसों को बद से बद्तर कर रहा है,
तभी तो भ्रष्टाचार की बलिहारी बढ़ रही है…।

धन-धन की खनक से गूँज रहा भारत,
बिना पैसे आज सुकून नहीं है जरा भी।
इसलिए भ्रष्ट बन हम भागम-भाग कर रहे हैं,
तभी तो भ्रष्टाचार की बलिहारी बढ़ रही है…॥