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urmila-kumari

मजदूरी भी मजबूरी

उर्मिला कुमारी ‘साईप्रीत’
कटनी (मध्यप्रदेश )
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श्रम आराधना विशेष…

जीवन था सपनों-सा सुंदर,
माटी में खेल रचा था अंदर
किसने देखी सुबह कहाँ पर,
किसने देखा था आसमान पर।

भाग्य कहाँ से कहाँ ले आया,
अपनों ने ही मजबूर बनाया
पापी पेट ने मजदूर बनाया,
मेहनत से मन नहीं घबराया।

सपने मेरे औरों से भी ऊँचे थे,
एक दिन कार्य भी बदलने थे
पढ़-लिख कर तेवर बदलने थे,,
हुकूमत के सारे मुझमें गुण थे।

अब किस्मत ने ऐसे रंग बदले थे,
सपना टूटा, बिखरे आँसू गालों पे थे
पिता का साया जाने पर भूखे हम थे,
भीख मांगना हमारी फितरत में नहीं थे।

दो रोटी के लिए कदम बढ़ाकर हमें,
मजदूर बनना ही ठीक लगा था हमें
मेहनत से रुपए कमाकर हम खाएंगे,
अपनों का हम पेट भर सुकून पाएंगे।

जितना श्रम हम खूब कर पाएंगे,
उतना दिलों को तसल्ली दे पाएंगे।
मजदूर बनकर हम मजदूरी करेंगे,
‘उर’ से शांति दूत हम कहलाएंगे॥