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मज़दूर की माटी

डॉ. पंकज कुमार बर्मन
कटनी (मध्यप्रदेश )
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श्रम आराधना विशेष….

मुट्ठी में धूप समेटे चलता है वो हर रोज़,
माथे पे पसीने का ताज लिए रखता है संजोग।

मकान तेरा हो या मेरा, उसी की नींव से खड़ा,
मौन रहकर भी बोलता, वो हर ईंट में जुड़ा।

मुट्ठियाँ भरी नहीं कभी, फिर भी नहीं थमा,
मज़बूती से थामे रखा हर सपना और हर ग़म।

मंज़िलें औरों के लिए बनाए वो बेख़ुदी में,
मिट्टी में सना, बना सितारा बेनज़री में।

मशक्कत उसकी रचती है प्रगति की नई गाथा,
मूल्य नहीं कोई तय उसका, फिर भी देता साथ।

मशालें जलतीं उसी के श्रम से अंधेरों में,
मालिकों के महलों में बसता वो ख्वाबों के सेरों में।

मज़दूर सिर्फ़ नाम नहीं, जज़्बा है एक आग है,
मुक्ति भी तब आएगी जब समझोगे त्याग है॥