कुल पृष्ठ दर्शन : 5

मधु-ऋतु

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
**********************************

मधुमय मकरंद सदृश्य
लालिमा रंग लाई है,
खिलती-सी सकुचाती-सी
यह ऊषा मन भाई है।

केतकी, चमेली, चम्पा
सब मिल कर मुस्काई है,
प्रातः के मंद सौरभ ने
सकल धरा महकाई है।

लिपटी लतिकाओं से
तरुओं की तरुणाई है,
मधु-ऋतु में रंगों ने बस
मृदुल छटा बिखराई है।

तारिकाएँ जा रही हैं
जन-जीवन सुखदाई है,
अंधकार हट गया और
रक्तिम आभा छाई है।

मिश्रित संगीत सुर कहीं,
किसी प्रेमी ने बजाई है।
प्रिय प्रेयसी मन ही मन,
फिर सहमी सकुचाई है॥