सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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मधुमय मकरंद सदृश्य
लालिमा रंग लाई है,
खिलती-सी सकुचाती-सी
यह ऊषा मन भाई है।
केतकी, चमेली, चम्पा
सब मिल कर मुस्काई है,
प्रातः के मंद सौरभ ने
सकल धरा महकाई है।
लिपटी लतिकाओं से
तरुओं की तरुणाई है,
मधु-ऋतु में रंगों ने बस
मृदुल छटा बिखराई है।
तारिकाएँ जा रही हैं
जन-जीवन सुखदाई है,
अंधकार हट गया और
रक्तिम आभा छाई है।
मिश्रित संगीत सुर कहीं,
किसी प्रेमी ने बजाई है।
प्रिय प्रेयसी मन ही मन,
फिर सहमी सकुचाई है॥
 
					 
		