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मन की पीड़ा

जी.एल. जैन
जबलपुर (मप्र)
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शब्द हैं रूके-रूके,
नैन हैं ठगे-ठगे
अतिथि सभी छले गए,
नाम धर्म का, मौत दे गए।

सर झुके-झुके,
कदम नहीं रूके
बीबी रोई, बच्चे भी रोए,
नाम धर्म का, मौत दे गए।

पर्वत भी चीखों से पिघल गए,
कश्मीर से रोजी-रोटी लूट गए।
चंद जयचंद फिर मिल गए,
नाम धर्म का, मौत दे गए॥