प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’
सहारनपुर (उप्र)
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मन में पूजित शिव के चरण उठ प्रातः मनाऊं शिव को,
बिल्व-पत्र लिख हृदय-समर्पण जल नहलाऊं शिव को।
भक्ति भाव से नतमस्तक हो शिव का करती वंदन,
श्रृंगारित शिवलिंग पहनाती राम नाम आभूषन
चंदन, धूप, दीप, पुष्पों से नित्य सजाऊं शिव को,
बिल्व-पत्र लिख हृदय-समर्पण जल नहलाऊं शिव को…।
शिव है भक्ति शिव है शक्ति आराधन उर अंदर,
प्रेम-समर्पण गगरी भरती वे करुणा के समंदर
सुमिरन के सच्चे-मोती मैं भेंट चढ़ाऊं शिव को,
बिल्व-पत्र लिख हृदय-समर्पण जल नहलाऊं शिव को…।
लौकिक नेत्र निहारूं शिव को ज्ञान चक्षु खुल जाएँ,
बुद्धि-तत्व में शिव हों विराजित ज्ञान सुधा बरसाएँ
सारे वैभव छोड़ जगत के मैं अपनाऊं शिव को,
बिल्व-पत्र लिख हृदय-समर्पण जल नहलाऊं शिव को…।
शिव-शिव करते सब हो शिवमय दृष्टि-दोष मिट जाएँ,
गुरु-कृपा से नाम मिला मुख रट- रट भव तर जाएँ
हो ना स्मरित शिव के सिवा कुछ प्रेम बुलाऊं शिव को,
बिल्व-पत्र लिख हृदय-समर्पण जल नहलाऊं शिव को…।
रूप निरंजन मन को मोहे श्रद्धा भर-भर जागे,
स्नेह तार सब शिव से बांधूं वाणी शिव रस पागे
सजग स्वयं ही मुख को निरंतर नाम जपाऊं शिव को,
बिल्व पत्र लिख हृदय समर्पण जल नहलाऊं शिव को…।
मन में पूजित शिव के चरण उठ प्रातः मनाऊं शिव को,
बिल्व-पत्र लिख हृदय-समर्पण जल नहलाऊं शिव को…॥