राधा गोयल
नई दिल्ली
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कई जगह पर महामारी है,
और कहीं मारा-मारी है
कहीं पे लूटपाट और दंगा,
आज आदमी बना लफंगा।
एक-दूसरे से सब जलते,
ए-दूसरे को सब छलते,
अपने हित साधन में रत हैं
दूजे की खुशियों से विरत हैं।
कैसे मैं समझाऊँ इनको,
सबको ही तुम अपना समझो
किसी दुखी के अश्रु पोंछकर,
उसके दु:ख को कुछ कम कर दो।
कैसे समझाऊं इन सबको,
‘मन ही मन में युद्ध छिड़ा है’
धन की लिप्सा छोड़ दे मानव,
बेमतलब का ये झगड़ा है।
कुछ भी साथ नहीं जाएगा,
सब कुछ यहीं छोड़ जाएगा।
खाली हाथ ही आया था तू,
खाली हाथ ही तू जाएगा॥