ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
***************************************
अपनों को देखकर,
आँखों से जो छलक आते हैं
वो मर्म के आँसू होते हैं,
रोके रुकते नहीं हैं
बस बहते चले जाते हैं,
हृदय का स्पंदन होते हैं।
मन के भावों को,
छुपाया नहीं जा सकता
वो भी अश्रु बन कर,
निकल आते हैं।
कितने भी हों गिले-शिकवे,
शिकायतें हो अपनों से
तो बेझिझक चले आइए, अपनों के पास
फिर देखना कैसे,
मर्म के आँसू
सारे गिले-शिकवे
दूर कर देते हैं।
यकीन मानिए,
अपने हैं तो सुनहरे सपने हैं
थोड़ा वक्त दीजिए अपनों के साथ,
कहीं ऐसा न हो कि हम,
शिकायतें करते रहे,
और अपनों से कोसों दूर हो जाएं।
निकल जाने दीजिए,
उन आँसुओं को
जो दबे हुए हैं अतीत के पन्नों में,
मन हल्का हो जाता है।
बड़े नाजुक होते हैं,
मर्म के आँसू॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।