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महका था ऑंगन

रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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चहक उठे थे पंछी घर के, तुलसी संग महका था ऑंगन
बरहा, छठ्ठी और होली के, गीतों पर ठुमका था ऑंगन।

घर छोटा, परिवार बड़ा था, खुश सबको रखता था ऑंगन
नई बहुरिया, रचे महावर, नेह से कुछ दमका था ऑंगन।

तुतली भाषा और गुनगुनी दोपहर संग साझा था ऑंगन
ऋतुओं ने जीवन-रंग भेजा, बेला संग बहका था ऑंगन।

रक्तिम नयन मिला करते थे, रोकर काॅंप उठा था ऑंगन
बाबू जी निस्तेज पड़े थे, व्याकुल हो चीखा था ऑंगन।

जीवन दर्शन सीख चुका था, ज्ञान रूप गीता था ऑंगन।
धीरे-धीरे लुप्त हुआ था, बन अतीत छूटा था ऑंगन॥