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माँ कूष्मांडा-४

सपना सी.पी. साहू ‘स्वप्निल’
इंदौर (मध्यप्रदेश )
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ब्रह्माण्ड के विराने, शून्य में,
जब कोई नहीं था आकार
तब मंदहास माँ कूष्मांडा ने,
सृष्टि रच, मिटाया अंधकार।

चतुर्थ दुर्गा सूर्यलोक वासी,
सकल सृष्टि का करें श्रृंगार
सिंहवाहिनी, अष्टभुजावाली,
कमंडल-कलश हस्त धार।

धनुष, कमल, चक्र, गदा धारे,
ब्रह्माण्ड जननी, आदि शक्ति
धरती से नभ, जल से पाताल,
अणु-अणु करते माँ की भक्ति।

मातृछाया से हो जीवन निर्विघ्न,
दूर हो भ्रांति, शेष रहे न संशय
आयु, यश, बल, आरोग्यदात्री,
कष्ट में औषध, पराजय में जय।

माँ कूष्मांडा के आशीर्वाद से,
सृष्टि में प्राणशक्ति व उल्लास।
भव तारिणी, कष्ट हरने वाली,
शरणागत रहे न कभी उदास॥