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माँ के चरणों में स्वर्ग की अनुभूति

जी.एल. जैन
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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पैर में लगे काँटे की चुभन का, माँ आँसू होती है,
कोख में जन्म देने का माँ निःस्वार्थ बलिदान होती है
जीवन के हरेक लक्ष्य का, संघर्ष हो माँ तुम,
अंगुली पकड़ आत्मनिर्भरता का माँ गुरुमंत्र होती है
माँ के चरणों में स्वर्ग की अनूभूति होती है।

माँ को परिभाषित करने के शब्द नहीं होते हैं,
ईश्वर भी माँ की कोख से जन्म लेते हैं
मातृभूमि हो या जननी दोनों का स्वरुप है माँ,
जन्म हो या मृत्यु माँ हृदय तल से याद आती है
माँ के चरणों में स्वर्ग की अनूभूति होती है।

ब्रह्मांड-सृष्टि के निर्माण का माँ व्रत- उपासना होती है,
आयुबल आरोग्य वृद्धि का, माँ कलश-पूजन-अर्चन होती है
सुरक्षा की भक्ति अध्यात्म चिंतन हो माँ तुम,
मेरी आत्मा के मोक्ष का माँ मनोरथ होती है
माँ के चरणों में स्वर्ग की अनूभूति होती है।

प्रभु की प्रार्थनाएं जब खत्म होती है,
माँ के आशीर्वाद की दुआएं तब शुरू होती है
माँ शब्द में संसार का होता है सार,
माँ का दर्द उनसे पूछो जिनकी माँ नहीं होती है
माँ के चरणों में स्वर्ग की अनूभूति होती है।

खुद गीले में सोती है बच्चों को सूखे में सुलाती है,
खुद भूखी रहती है बच्चों को छप्पन भोग खिलाती है
बच्चों को ऊँचाई दिलाती है माँ कभी थकती नहीं है।
वृद्धा आश्रम से भी माँ बच्चों का भला सोचती है,
माँ के चरणों में स्वर्ग की अनूभूति होती है॥