डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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मातु चन्द्रघंटा शिवा, तृतीय दिवस महान।
सिंहवाहिनी चन्द्रिके, महिमा मंडन गान॥
महिषासुर आतंक से, देवलोक भयभीत।
देवों ने मांगी मदद, विधि शिव विष्णु विनीत॥
पीड़ कथा सुन देव की, त्रिदेव हुए अतिक्रुद्ध।
त्रिदेव तेज उर्जा प्रकट, देवी अनुपम शुद्ध॥
अर्धचन्द्र माँ भाल पर, शुभ घण्टा आकार।
माँ चंद्रघण्टा अवतरण,महिषासुर संहार॥
शिव त्रिशूल हरि चक्र से, सूर्य तेज तलवार।
देवों के दिव्यास्त्र से, माँ शोभित उपहार॥
आलोकित तनु स्वर्णिमा, निर्भय शक्ति अनूप।
भरी जोर हुंकार माँ, महाकाल अनुरूप॥
विनत शान्ति जगदम्बिके, मुख सरोज मुस्कान।
पूजन शुचि अन्त:करण, मिले शान्ति सुख मान॥
अस्त्र शस्त्र करसज्जिता, दशभुज रूप विशाल।
माँ महिषासुरमर्दिनी, महाकाल विकराल॥
नवदुर्गा नवरात्रि में, नारी शक्ति स्वरूप।
भक्ति भाव माँ पद युगल, पूजें सुर नर भूप॥
दुर्गा दुर्गति नाशिनी, चंद्रघण्टिका अम्ब।
त्रिपुरसुन्दरी वन्दिते, महाकाल जगदम्ब॥
जगदम्बा वृषवाहिनी, ब्रह्माणी जय गान।
कृपा चन्द्रघण्टे करो, दो खुशियाँ मुस्कान॥
चंद्रघण्टिका वैष्णवी, भजहुँ मंगला रूप।
कामाक्षी जगतारिणी, दुर्गा भव्य अनूप॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥
