डॉ.शशि सिंघल
दिल्ली(भारत)
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………
‘माँ’ एक शब्द नहीं,बल्कि इसमें दुनिया- जहान का बसेरा है। इसे कुछ शब्दों में बयां करना नाइंसाफी होगी। सम्पूर्ण जगत को ईश्वर का अनमोल तोहफा है ‘माँ’,जिसकी ममता भरी छाँव में जन्नत जैसा सुकून मिलता है। माँ का नाम लेते ही दिलो-दिमाग पर छाए संकट के बादल छट जाते हैं और ये सिर खुद-ब-खुद उसके सामने नतमस्तक हो जाता है। माँ जैसे प्राणी की रचना करने वाला स्वयं खुदा भी माँ की ममता,करुणा,दया, सहनशीलता,संघर्षता तथा मजबूत इरादों के आगे सजदा करता है।
#सभी रिश्तों में सर्वोच्च स्थान-
समाज व घर-परिवार में रिश्ते-नातों की फेहरिस्त लंबी ही होती है,मगर उस सबमें माँ का नाम सबसे ऊपर यानी सर्वोच्च स्थान पर होता है। वक्त बदला, समाज बदला,रीति रिवाज व मान्यताएं बदली,रिश्ते-नाते और उनकी अहमियत बदली,पर एक रिश्ता नहीं बदला जो है माँ का। वक्त की बदलती आंधी ने बहुत कुछ बदल दिया,लेकिन ये आंधी माँ की ममता नहीं बदल सकी और ना ही उसकी भावनाएं। माँ की ममता तो बिना किसी चीज की मिलावट,निस्वार्थ व भेदभाव से रहित अनमोल रत्न है।
#जुबां पर एक ही नाम-
जब बच्चा बोलना शुरू करता है तब उसके मुँह से निकलने वाला पहला शब्द माँ ही होता है। हम चाहे कितने भी बड़े हो जाएं,लेकिन जब भी कोई मुसीबत या दर्द में होते हैं तो हमारे मुँह से निकलने वाला शब्द भी माँ ही होता है। यह शब्द हमें हमारी तकलीफों से आजाद कराने में सहायक तो होता ही है,साथ ही माँ की ममता से भरा स्पर्श हमारे सारे जख्मों पर मरहम का काम भी करता है।
#तब मुझे पता चला ‘माँ ‘ क्या होती है-
वास्तव में हमें माँ क्या होती है ? उसकी हमारे जीवन में क्या अहमियत होती है ? इसका अंदाजा माँ के साए में रहते हुए शायद नहीं हो पाता,मगर जब हम माँ बनते हैं तब पता चलता है कि माँ का दिल क्या होता है। मुझे ऐसे कई वाकये याद आते हैं,जब मैं भी माँ की ममता को पहचान ना पाती थी और उल्टा माँ पर भड़क उठती थी। अधिकांशतः विद्यालय से लौटते वक्त जब कभी १५ से २० मिनट की देरी हो जाती तो,माँ को बहुत हैरान और परेशान पाती थी। ऐसे में माँ मुझे देखते ही बरस पड़ती थी। तब मुझे बहुत गुस्सा आता था। लगता था कि माँ को मुझ पर भरोसा नहीं है। ऐसे एक नहीं कई वाकये थे,जो आए-दिन घटते रहते थे। खैर,कुछ समय पहले की बात है जब मेरा बेटा विद्यालय से घर आने में १५ मिनट लेट हो गया,तब मेरा तो कलेजा मुँह को आ गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं ? दिल की घड़कनें तेज हो गयीं। उन बीस मिनट में मैं जाने कितनी बार बेमौत मरी। मन में बुरे-बुरे ख्यालों ने झट से अपना डेरा जमा लिया। तब मैंने जाना कि माँ और माँ का दिल अंदर से कितना भी मजबूत क्यों ना हो, वह बहुत ही घबराहट भरा और कमजोर होता है। अब लगता है कि माँ का गुस्सा करना कितना जायज था। उसकी ममता की कीमत मुझे अब पता चल रही है। यह सही है माँ दिखने में भले ही मजबूत हो किंतु भीतर से बहुत ही कमजोर और आशंकित प्राणी होती है।
#माँ की दुआओं का असर-
माँ की दुआओं के बारे में जितना कहा जाए,उतना कम ही है। हम घर में हों या घर से दूर, देश में हों या परदेस में,माँ की दुआएं साया बनकर हमेशा हमारे इर्द-गिर्द रहती हैं जो हमें हर अला-बला और मुसीबतों के तपते सूरत से बचाती हैं।
#मातृ दिवस-
यूँ तो हर दिन,हर वक्त,हर पल माँ का साथ हमारे जीवन का मजबूत सहारा है। माँ अपनी जिंदगी का हर पल हम पर निछावर करती है, मगर अपने लिए दो पल भी सुकून के नहीं निकाल पाती। माँ बिना थके,बिना रुके,बिना किसी शिकायत के अपने बच्चों की देखभाल में दिन-रात एक कर देती है। उसके लिए आराम तो जैसे हराम है,तो बस उसे इन सब कामों की चिक-चिक से दूर रखकर आराम देने का एक बहाना ही तो है ‘मातृ दिवस।’ अत: उस माँ के सम्मान और खुद से परिचित कराने के लिए ही मनाया जाने लगा है मातृ दिवस,जिससे वह भी कुछ पल सुकून से जी सके।
परिचय-डॉ.शशि सिंघल का जन्म २१ सितम्बर १९६६ को आगरा में हुआ है। वर्तमान में आप स्थाई रुप से नई दिल्ली में रहती हैं। देश कॆ हृदय प्रदेश दिल्ली की वासी और हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली डॉ.सिंघल की पूर्ण शिक्षा पीएचडी है। आपका कार्यक्षेत्र-घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढा़ना है। इससे पहले ४ साल तक कोचिंग सेन्टर चलाया है। कुछ वर्ष अखबार में उप-सम्पादक पद का कार्यभार संभाला है। सामाजिक गतिविधि में क्षेत्रीय कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। लेखन विधा-लेख (सामाजिक,समसामयिक,सांस्कृतिक एवं ज्वलंत विषयों पर)एवं काव्य भी है। काव्य संग्रह में कुछ कविताओं का प्रकाशन हुआ है तो काव्य संग्रह-‘अनुभूतियाँ प्रेम की’ आपके नाम है। करीब २८ वर्षों से विभिन्न राष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं में आपकी ५०० से ज्यादा रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर लिखने में सक्रिय डॉ.सिंघल की विशेष उपलब्धि-आगरा की पहली महिला होने का सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-लोगों को जागरूक करने का भरपूर प्रयास करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक- मुंशी प्रेमचंद हैं,तो प्रेरणापुंज-डॉ.शशि तिवारी हैं। विशेषज्ञता-संस्कृत भाषा का ज्ञान है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है। हिन्दी के प्रति मेरा विशे़ष लगाव है। सबको मिलकर हिन्दी भाषा की लोकप्रियता के लिए और काम करना चाहिए।”