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माँ ने छोड़ी साँसें…

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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माँ ने छोड़ी अन्तिम साँसें, इस तन से सब रिश्ता-नाता टूटा
वह चली गई परलोक गमन, पर धरती का सब यहीं पर छूटा।

एक टक गाड़ी आँखें छत पर, नयनों से त्यागे अन्तिम प्राण
जिव्हा लटक गई, श्वाँसें उखड़ी, टूटी नाड़ी, झूल गए दोनों कान।

अजीब तड़प हुई तन में थी, मौत ने लिया ये कैसा इम्तेहान ?
टूटी साँसों की डोरी क्षण भर में, छूट गया यह सकल जहान।

दुनिया का मिलता सब हाट-बाट में, पर माँ तो नहीं मिलती
खुशियाँ हैं लाख यहाँ, माँ की गोद-सी खुशियाँ नहीं मिलती।

था ममता का साया अब तक उनका, अब तो संबल रहा नहीं
ऐसा कौन-सा दुख था जीवन में, जो माँ ने शायद सहा नहीं ?

पिता का जाना, भैया का देह त्यागना, बहना भी तो चली गई,
ऐसे में माँ की ममता की छाया, हम पर अब तक बलि रही।

इस संसार में देह धार कर, माँ के गर्भ से ही तो मैं आया था
अंगुली पकड़ कर पथ पर चलना, माँ ने ही तो सिखाया था।

सूना कक्ष अब माँ हो गया, घर लगता कुछ खाली-खाली है।
माँ-बाप, गुरु के रिश्ते ही तो सच्चे हैं, बाकी तो सब जाली हैं।

इस रहस्य भरे संसार में, जन्म-समय का अजीब सा खेला है
मौत का मातम देख के लगता है, जीव जग कारा में धकेला है।

आठ जुलाई दो हजार पच्चीस को, सांय, माँ का जाना हुआ।
बोलते-बोलते वह चली गई, खत्म ज़िन्दगी का अफसाना हुआ॥