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मानसिक प्रदूषण दूर करना और सीमित होना होगा

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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प्रकृति और खिलवाड़…

जब व्यक्ति पैदा होता है, वह नैसर्गिक होता है। हमारे चारों तरफ पेड़, पौधे, वृक्ष, नदियाँ, पहाड़ आदि भी नैसर्गिक होने पर बहुत सुन्दर दिखाई देते हैं। मनुष्य के पास मन-बुद्धि होने से उसमें नीर-क्षीर विवेक होने से हर वस्तु में गुण-अवगुण, लाभ-हानि देखना शुरू करता है। बालक भी, जब तक उसका विवेक जाग्रत नहीं होता वह भोला-भाला रहता है। प्रकृति के नजदीक रहने से उसमें ईश्वरीय रूप दिखाई देता है। बालक के १० वर्ष के बाद विवेकवान होने से उसमें धीरे-धीरे चालाकी के गुण आने लगते हैं, क्योंकि उसमें बुद्धि के साथ-साथ परिवार-परिवेश का प्रभाव पड़ने लगता है। इसी समय से उसमें प्रदर्शन, प्रतिस्पर्था के साथ प्रतिष्ठा का बोध जाग्रत होता है। बालक शनैः-शनैः बड़ा होता जाता है, तो उसको संसार छोटा लगने लगता है, जबकि जन्म के उसको पालना बड़ा महसूस होता है। जब वह यौवन में आता है, तब स्वयं के साथ-साथ अन्य के साथ भी खिलवाड़ करना शुरू करता है। व्यवसाय या अपने क्षेत्र में स्थापित करने के लिए वह विवेकशून्य होकर कुछ भी करता है। उसकी चाह अनंत होने लगती है। यहां से खिलवाड़ की प्रवृत्ति शुरू होती है। उसके बाद वह प्रकृति का दोहन शुरू करता है, जिसका माध्यम धन-दौलत-पैसा होता है। उस पैसे के लिए वह भविष्य का परिणाम देखे कुछ भी करने लगता है। जब तक हम प्राकृतिक रहते हैं, सादा जीवन उच्च विचार को अपनाते हैं, तब तक सब सही चलता है।
जबसे भौतिकता का चलन चला, सबसे पहले उसने अपने-आपसे खिलवाड़ किया यानी मायाचारी, लोभ के कारण संग्रह की प्रवृत्ति बनी। उसके लिए भवन, फर्नीचर, सजावट के लिए अन्य सामग्री का संग्रह शुरू किया जाने लगा। इसके साथ उसने जंगल की कटाई, बाँध बांधकर जल का दोहन, भोजन के लिए मांसाहार के बाबत जानवरों की हिंसा करना शुरू किया।
यह प्रकृति पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्नि से निर्मित है। मन होने से मनुष्य कहलाने लगे। ये पंच महाभूत सीमित हैं, पर मानव ने इनका असीमित दोहन किया, कर रहा हैं और करेगा।
यदि हम अपनी अभी तक के जीवनकाल का आत्मवलोकन करेंगे, तब पाएंगे कि हमने प्रकृति के साथ कितना अधिक खिलवाड़ किया है। प्राकृतिक दोहन में गगनचुम्बी भवन बनाना, सडकों का चौड़ीकरण करना, दिन- रात धरती के ऊपर वाहनों का चलना, धरती जैसा धैर्यवान कौन होगा, जिसका चीरहरण हर पल होता है। जब उसकी सहनशक्ति असहनीय होती है, तब वह अंगड़ाई लेती है तो सब धरा पर धरा रह जाता है।
जल का दोहन अकथनीय है। जब धरती की छाती पर सैकड़ों फुट की खुदाई कर पानी निकाल कर उपयोग किया, अब हम जल के लिए तरस रहे हैं। सुना है २-२ नदियों को मिलाकर पानी के बांध बना रहे हैं। नहीं, हर नदी के पानी के गुण-दोष अलग-अलग होते हैं, हम पानी को विकृत कर रहे हैं।
वायु की महिमा अपरम्पार है। उसके बिना जीवन रह नहीं सकता, पर वर्तमान में हमें शुद्ध हवा नसीब नहीं है। दिन-रात कारखानों, वाहनों का उपयोग हमारे विनाश का कारण है। ताज़ी हवा हमारे नक्षत्र से समाप्त होने की कगार पर है।
अग्नि जिससे हमें ऊर्जा मिलती है, जिसका प्रमुख स्त्रोत सूर्य है, उसमें से ओजोन परत हटाने से हम ऊर्जा को तरसने लगे हैं। आज कारखानों, वाहनों के साथ निजी जीवन में प्राकृतिक ऊर्जा का उपयोग नहीं करते हैं।दिन-रात बिजली, वातानुकूलक, पंखे, मशीनों के कारण जलवायु प्रदूषित होकर हम परेशान होते हैं। जैसे-अत्यधिक गर्मी पड़ना, कम या अधिक वर्षा होना, असंतुलित वर्षा या ठण्ड पड़ना आदि।
आज पृथ्वी पर जगह की कमी होने से गगनचुम्बी भवन बन रहे, अब वायुयान ज्यादा उड़ते हैं, अंतरिक्ष की खोज से हम असुरक्षित हो रहे हैं। परमाणु बम के कारण दुनिया मौत की कगार पर है। अब हम इतने आगे बढ़ चुके हैं कि, प्राकृतिक अवस्था में नहीं आ पाएंगे। अब हमारे विनाश की शुरुआत बहुत तेज़ गति से हो चुकी है। जम्मू- कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में प्रकृति के साथ इतना अधिक खिलवाड़ किया जा चुका है कि, विनाश की शुरुआत हो चुकी है।
विनाश के समय में अकाल, मौत और भय व्याप्त होता है, जिसके लक्षण दिख रहे हैं। हर व्यक्ति खाना सीमित क्यों खाता है, कार एक सीमा से अधिक क्यों नहीं चलाता ?, पर प्रकृति के दोहन में असीमित क्यों ? खिलवाड़ हमारे मन से शुरू होता है। हमें सबसे पहले अपना मानसिक प्रदूषण दूर करना होगा और सीमित होकर अनावश्यक प्रकृति से खिलवाड़ नहीं करना होगा। तभी हम सुरक्षित रह पाएंगे, अन्यथा विनाश का मार्ग हमने स्वयं चुना है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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