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मायने ही बदले

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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इस रंग बदलती
दुनिया में
आज आदमी भी,
स्वार्थपरता के रहते
गिरगिट की तरह,
पल-पल
बदल रहा है रंग।

माना परिवर्तन
प्रकृति का नियम है,
पर आज आदमी
छोड़ कर,
अपने पूर्वजों के
संस्कारों की धरोहर,
अपना रहा है
आधुनिकता के नाम पर
थोथा फूहड़पन।

लांघ रहे हैं
अपने संस्कारों की,
मर्यादाओं की
लक्ष्मण रेखा।

परिधान बदले
यहाँ तक तो ठीक है,
पर आज तो
परम्पराएं ही,
बदल रही हैं।

स्वार्थीपन ने तो,
जैसे रिश्तों के मायने ही
बदल दिए हैं,
लगता है
रिश्ते जी नहीं रहे हैं,
बस विवशतावश
ढो रहे हैं।

कुंठित सम्वेदनाएं
दूषित भावनाएं,
मनुष्य के अस्तित्व को
भीतर ही भीतर,
दीमक की तरह
चाट रही है।

असहनीय कोढ़ की पीड़ा
झेल रही है,
आज मनुष्य की
बीमार मानसिकता।

अपने ज़मीर को
रखकर गिरवी,
क्यों बिन पेंदे के
लोटे की तरह,
लुढ़कते रहते हो
इधर से उधर ?

गंगा गए तो गंगाराम,
जमुना गए तो
जमुनाराम,
क्यों अपने
थोड़े से फ़ायदे के लिए,
बदल रहे हो
प्रकृति के क़ायदे ?

जीवन जीने के,
खोखले मापदंडों की
वेदी पर,
क्यों चढ़ा रहे हो
अपने आदर्शों की,
अपने उसूलों की बलि ?

कहते हैं वृक्ष भी,
मौसमनुसार
पत्ते बदलते हैं,
अपनी जड़ें नहीं॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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