सीमा जैन ‘निसर्ग’
खड़गपुर (प.बंगाल)
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नहीं करते कभी शिकवे,
भूलेंगे सारी कसमें
संभल जाएंगे हौले-से,
मिटेंगे बेरुखी के गिले।
आरज़ू तुमसे नहीं हमदम,
तासीर तेरी यही हरदम
पत्थर से टकरा बैठे,
एक यही था हमको ग़म।
शुद्ध इश्क़ अब रहा नहीं,
दुष्ट इश्क़ फैला हर कहीं
फांसता मछली को देख,
जिंदा रहा अब ज़मीर नहीं।
स्वच्छ चाँदनी बिछी पड़ी,
हवाएं ठंडी-सी चल पड़ी।
गैरत जाग उठी मन में,
बेरुखी अब न कहीं खड़ी॥