कुल पृष्ठ दर्शन : 27

You are currently viewing मिट्टी को सोना बनाता हूँ…

मिट्टी को सोना बनाता हूँ…

डॉ. राम दयाल बैरवा
अजमेर (राजस्थान)
*******************************************

श्रम आराधना विशेष…

मैं मिट्टी में पसीना बहाता हूँ,
मिट्टी को सोना बनाता हूँ।

अभाव दर्द थकान सब सह जाता,
साधारण जीवन में शकुन पाता।

माथे पर पसीना जैसे चमके नगीना,
करते श्रम अपार चाहे कोई हो महीना।

दर्द-थकान को भूल कर चैन से सो जाता,
सुबह उठते ही एक नई ताजगी पाता।

रात-दिन मेहनत करता, जी-भर पीता पानी,
तंगी में भी खुश रहता, यह मजदूर की ज़िंदगानी।

नहीं चाहिए गाड़ी-बंगला और न ऐशो-आराम,
दो रोटी के सहारे दिनभर करता सारे काम।

मैं संतुष्ट हूँ, सौ रुपए की मजदूरी में,
नहीं देते वो समय पर और बट्टा लगाते मजदूरी में।

जप-तप, पूजा-पाठ और कुछ नहीं जानूं,
रहे सलामत पूरा परिवार तो ईश्वर को मानूं।

न कोई भूखा जाए घर से, न भूखा सोए,
और कोई कामना नहीं, यही मनोरथ पूर्ण होए।

काम भले कुछ भी हो, रहता काम में चूर हूँ,
परिवार के लिए ही तो रहता उनसे दूर हूँ।
मजबूर नहीं, मैं मजदूर हूँ…॥