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मीत-प्रीत-जननी कहो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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अंग-अंग माँ दूध से, सिंचित है सन्तान।
मीत-प्रीत-जननी कहो, शिक्षक या भगवान॥

तनिक भंग क्या लक्ष्य हो, तनिक चोट कहँ देह।
विचलित हो माता हृदय, आँखें बहती नेह॥

लालित-पालित बालपन, सुखमय ममता स्नेह।
खिली जिंदगी बागवाँ, सुरभित सन्तति देह॥

ममतांचल छाया तले, सदा सुरक्षित बाल।
उरतल स्नेहिल लेप से, हो सन्तति खुशहाल॥

करुणामय माँ का हृदय, मानसरोवर धार।
संवेदन हिय वेदना, दर्दिल परहित सार॥

माँ प्रतीक धरती समा, सन्तति सुख संसार।
माँ जीवन संजीवनी, खुशियों का आधार॥

सहनशीलता धीरता, मानक माँ निशि रैन।
ललित लसित वात्सल्यता, अश़्क बहाती नैन॥

निर्मल कोमल पल्लवित, मातृ हृदय समुदार।
लोभ मोह मद विरत माँ, क्षमाशील- सुखसार॥

सप्तसरित पावन सलिल, होती स्नेहिल धार।
सप्त सिन्धु गह्वर हृदय, उरतल क्षीर अपार॥

संघर्षक जीवन कथा, सुख-दु:ख दर्पण लोक।
नमन मातु श्रीपद चरण, स्नेहाशीष बहार॥

माँ अनंत महिमा जगत, कौन करे उल्लेख।
नवदुर्गा नव शक्ति माँ, अतुलनीय विधिरेख॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥