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मुकम्मल ठिकाना तो दे

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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घर ना दे तो ना दे शामियाना तो दे
ज़िंदगी को मुकम्मल ठिकाना तो दे।

मैं उफनती हुई हूँ नदी आजकल,
तू हवादिस से पहले मुहाना तो दे।

कैद करके उसे यूँ भुला क्यों दिया,
उस परिंदे को कुछ आबो-दाना तो दे।

वो मनाने को आएगा पिछले पहर,
रूठने का मुझे एक बहाना तो दे।

शेर मनशाह नायक के जैसे कहूं,
मुझमें तौफीक तू शायराना तो दे॥