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मुख्यमंत्री की हिंदी विरोधी मानसिकता प्रकट

डॉ. मोतीलाल गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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हाल-ए-बंगाल….

२०११ की जनगणना के आधार पर पश्चिम बंगाल की जनसंख्या के अनुसार भाषावार आँकड़े निम्नलिखित हैं-
१.बंगाली-८,८०,७७,३७४ (८६. २२ फीसदी
२.हिंदी-५७,३९,६४५(५.६२ फीसदी)
३.संताली-२५,३३,९२३ (२. ४८ फीसदी)
४.उर्दू-२०,२२,०४७ (१.९८ फीसदी)
५.नेपाली-१०,२२,९४८ (१ फीसदी)
६.ओड़िया-४,२२,०४८ (०.४१ फीसदी)
७.पंजाबी-२,३५,३११ (०.२३ फीसदी)
८.अन्य-१०,३९,८९९ (१.०२ फीसदी)

उपर्युक्त आँकड़ों से स्पष्ट है कि बंगाल की आबादी में बांग्ला भाषियों के बाद सर्वाधिक आबादी हिंदी भाषियों की है। यह भी ध्यान देने की बात है कि बंगाल में रहने वाले अन्य भाषा-भाषी भी हिंदी समझते और बोलते हैं। इसलिए प्रशासनिक दृष्टि से जनसंपर्क के दृष्टिकोण से भी हिंदी महत्वपूर्ण भाषा है।
साहित्य की बात हो, समाचार पत्रों की बात हो, व्यापार की बात हो, कार्मिकों और मजदूरों की बात हो, व्यवहार की बात हो, धार्मिक-सांस्कृतिक संबंधों की बात हो। बंगाल और हिंदीभाषी क्षेत्र का गहरा संबंध था और है। इसके बावजूद भी पश्चिम बंगाल में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा नहीं दिया गया, जबकि उससे बहुत कम बोली जाने वाली नेपाली भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिम बंगाल जिस भारत संघ का हिस्सा है, हिंदी उसकी राजभाषा है। राष्ट्रीय स्तर पर संवाद और राष्ट्रीय एकता की दष्टि से संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान के अनुच्छेद ३५१ के अंतर्गत हिंदी के प्रयोग व प्रसार को बढ़ाने की बात कही गई है। उल्लेखनीय है कि हिंदी राष्ट्रीय स्तर पर अघोषित संपर्क-भाषा भी है। इसके बावजूद ममता बैनर्जी सरकार द्वारा डब्ल्यू बीसीएस की परीक्षा से हिंदी को हटाना अन्यायपूर्ण है, जिससे भाषाई विद्वेष की बू आती है। यह न केवल जनतांत्रिक मूल्यों के प्रतिकूल है, बल्कि संवैधानिक व्यवस्थाओं के भी प्रतिकूल है।
यह भी ध्यान देने की बात है कि जब स्वयं मुख्यमंत्री ने जनता की मांग को स्वीकार करते हुए वादा किया था कि आगे से इन परीक्षाओं में हिंदी उर्दू माध्यम में भी परीक्षा का विकल्प होगा और उसके बाद चुप्पी साधकर, उसे न रखना, यह मुख्यमंत्री की हिंदी विरोधी मानसिकता को प्रकट करता है। डॉ. अमरनाथ ने जनहित में इस बात को उठाया, यह सराहनीय है।
हिंदी फिल्मों के अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा जो स्वयं हिंदी भाषी क्षेत्र, बिहार से आते हैं और तृणमूल कांग्रेस के सांसद भी हैं। उनका बहुत बड़ा मत बैंक हिंदी-भाषी है। उन्होंने इस संबंध में ‘प्रभात खबर’ में छपे समाचार का संज्ञान लेते हुए कहा है कि ‘प्रभात खबर’ में उठाई गई आवाज सही और तार्किक है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया है कि मुख्यमंत्री की घोषणा के बावजूद ऐसा कैसे हो गया ?
अब जबकि सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के सांसद ने इसका संज्ञान लिया है तो अब उम्मीद जगती है कि सरकार जगेगी, मुख्यमंत्री अपने वादे को पूरा करेंगी और हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को भी पहले की तरह अपनी भाषा का विकल्प मिलेगा।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)