अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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‘मुफ्तखोरी’,
बड़ी घातक
कैसे बढ़ेगा देश ?
रोको बंटाधार
समझो।
‘मुफ्तखोरी’,
बनाती नाकारा
भविष्य का दीमक,
लीलती पुरुषार्थ
पतन।
‘मुफ्तखोरी’,
आदत बुरी
ईमानदारी को मिटाती,
राष्ट्र विकास
थमता।
‘मुफ्तखोरी’,
राष्ट्रीय रोग
करती बुद्धि कमजोर,
आराम भला
पिछड़ापन।
‘मुफ्तखोरी’,
होगा बचना
अंतर मिटाना जरूरी,
लाचार मनुज
बर्बादी।
‘मुफ्तखोरी’,
कर्म भुलाती
सफलता खत्म होती,
भूलता मेहनत
शिखर।
‘मुफ्तखोरी’,
सीधा लालच
सत्ता अपनी सोचती,
देश रसातल
अभिशाप।
‘मुफ्तखोरी’,
शोषण करती
आपसी प्रेम मिटता,
दुर्भावना बढ़ती
नासूर।
‘मुफ्तखोरी’,
अजीब सुविधा
दूर का नुकसान,
अंधी सरकार
चिंतन।
‘मुफ्तखोरी’,
नेता बरगलाते
करदाता का अपमान,
क्षुद्र स्वार्थ
रेवड़ी।
‘मुफ्तखोरी’
जनसेवा गायब।
जीतना ही स्वार्थ,
रोकना पड़ेगा,
अवसान॥