अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बड़े शहर के एक छोटे मोहल्ले में एक बूढ़ी अम्मा रहती थी। उनके पास १ पुरानी-सी खाट, १ मिट्टी का घड़ा और बिल्ला ‘शेरू’ था। अम्मा की एक ही खासियत थी- दिल से मीठा हँसना। पूरे मोहल्ले में उनकी हँसी की गूंज रहती थी, और जो भी मिलने आता, मन को प्रसन्न करके जाता।
अम्मा के घर के सामने रोज एक छोटा बच्चा खेलता था। वो हमेशा अम्मा को देखता, लेकिन कभी उनसे बात नहीं करता। एक दिन, बच्चा उदास बैठा था। अम्मा ने देखा, तो उसके पास आई और बोलीं,,-“क्या हुआ रे ? आज तू खिलखिला क्यों नहीं रहा ?”
बच्चा रोते हुए बोला-“मेरी गेंद खो गई, अम्मा। अब मेरे पास खेलने को कुछ नहीं।”
अम्मा मुस्कुराईं और खाट के नीचे से एक पुरानी गेंद निकाली। “ले बेटा, यह गेंद। खेल, और अपनी मुस्कान मत खोना।”
बच्चे की आँखें चमक उठीं। वह गेंद ले दौड़ते हुए खेलने चला गया। कुछ ही देर में उसकी हँसी मोहल्ले में गूंजने लगी।
अगले दिन बच्चे ने देखा कि अम्मा की खाट खाली है। पता चला कि अम्मा अब इस दुनिया में नहीं रहीं, लेकिन बच्चे के कानों में अब भी अम्मा की हँसी गूंज रही थी, जैसे वो कह रही हों, “अपनी मुस्कान कभी मत खोना।”
और उस दिन से जब भी कोई उदास होता, वो बच्चा आगे बढ़कर अम्मा की तरह किसी न किसी को हँसाता। अम्मा की वो गेंद अब बस एक खिलौना नहीं, बल्कि मोहल्ले में खुशियाँ बाँटने का जरिया बन गई थी।