ममता साहू
कांकेर (छत्तीसगढ़)
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छल-कपट और ईर्ष्या-द्वेष,
बड़ा विकराल है इनका वेश।
सब-कुछ कर देता है नाश,
नही रह जाता कुछ भी शेष।
बचकर रहना हर अवगुण से,
सदाचार को अपनाना।
अगर किसी से गलती हो,
थोड़ा क्षमादान दे जाना।
प्रेम-भाव रिश्तों के पोषक,
थोड़ा-सा बस झुक जाना।
कभी रूठे को मना लेना,
खुशियों के दीप जलाना।
माता-पिता की सेवा में,
जीवन अपना बिताना।
मानव हो, मानवता की खातिर,
सेवा-भाव को अपनाना॥