कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’
मुंगेर (बिहार)
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आ जाओ रे मेघ, जरा जल्दी से आओ,
उजड़ रहा खलिहान, थोड़ा नीर बरसाओ
हैं बहुत परेशान, तप रही धरा हमारी,
कृपा करो भगवान, हरी-भरी रहे क्यारी।
पशु-पाखी बेचैन, सूखे कंठ तड़प रहे,
एक नजर अब देख, कैसे विटप झुलस रहे
करना मत अब देर, सुन लो विनती हमारी,
काले-काले मेघ, बरसाओ वारि भारी।
काले-काले मेघ, व्योम पर देखो छाया,
नाचे मन का मोर, ऋते मनभावन आया
झूम उठे नर-नार, देख मोहक हरियाली,
सौंधी-सौंधी गंध, महकती डाली-डाली।
छेड़ रहे मल्हार, हे देव अब तो हरसो,
बरसो-बरसो मेघ, झमाझम झमझम बरसो।
पड़ने लगी फुहार, मौसम ली अँगड़ाई,
हर्षित हुए किसान, हर ओर खुशियाँ छाई॥