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‘मेघ’ दूत बन के जा

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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महाराज कुबेर के सेवक कहाते थे,
प्रतिदिन पूजा के लिए फूल लाते थे।

नाम था यक्ष, यवन के थे राजकुमार,
अपनी पत्नी प्रिया से करते थे प्यार।

पत्नी का ख्याल करते, सेवा में हुई देर,
कठोर दंड दे दिए थे, महाराज कुबेर।

यक्ष, पत्नी के प्यार में व्याकुल होकर,
दिल की बात बताई, मेघ को बुलाकर।

हे मेघ प्रिया से कहना मेरी कथा को,
मेरी प्रेमिका को बताना तुम व्यथा को।

जाओ मेरे मित्र मेघ, जाओ बदरिया,
संग में लेते जाना प्रेमिका बिजुरिया।

यक्ष कुमार का लेकर, दर्द भरा संदेश,
चले हैं मित्र मेघ यक्ष कुमार के देश।

ऊँचे-ऊँचे पर्वतों से, टकराती हुई
जोर-शोर से, बिजली चमकती गई।

चले मेघ, दूत बन के गगन की डगरिया,
जहाँ मन मारे बैठी हैं, यक्ष की प्रिया।

गुलमोहर के पेड़ तले, बैठी यक्ष रानी,
उलझे हुए थे बाल, आँखों में था पानी॥

परिचय– श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है |