नमिता घोष
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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इच्छा तो बहुत थी
कि एक घर होता,
मेहंदी के अहाते वाला
कुछ बाड़ी-झाड़ी कुछ फल-फूल।
द्वार पर एक गाय
बाहर बरामदे में एक कुरसी,
बारिश होती
तेल का धुंआ उठता।
लोग-बाग आते
कभी-कभी बहनें सखी-सहेली,
कुछ फैलावा रहता
थोड़ी खुशी फैली।
पर लगा कुछ ज्यादा चाह ली
स्वप्न भी यथार्थ के दास हैं,
भूल गई
खैर,जैसा भी हो जीवन कट जाएगा।
न अपना घर होगा न अपनी जमीन
फिर भी आसमां तो होगा,
फिर भी नदी तो होगी
कभी भरी-कभी सूखी।
रास्ते होंगे अपना शहर होगा
और एक पुकार धीरे से,
जो याद दिलाएगी,
कि तुम्हारी कोई इच्छा थी कभी।
धरती तपती रही,
तलुवे जलते रहे।
और मैं चलती रही,
अपने घर की तलाश में…॥
परिचय-नमिता घोष की शैक्षणिक योग्यता एम.ए.(अर्थशास्त्र),विशारद (संस्कृत)व बी.एड. है। २५ अगस्त को संसार में आई श्रीमती घोष की उपलब्धि सुदीर्घ समय से शिक्षकीय कार्य(शिक्षा विभाग)के साथ सामाजिक दायित्वों एवं लेखन कार्य में अपने को नियोजित करना है। इनकी कविताएं-लेख सतत प्रकाशित होते रहते हैं। बंगला,हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित काव्य संकलन (आकाश मेरा लक्ष्य घर मेरा सत्य)काफी प्रशंसित रहे हैं। इसके लिए आपको विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया,जबकि उल्लेखनीय सम्मान अकादमी अवार्ड (पश्चिम बंगाल),छत्तीसगढ़ बंगला अकादमी, मध्यप्रदेश बंगला अकादमी एवं अखिल भारतीय नाट्य उतसव में श्रेष्ठ अभिनय के लिए है। काव्य लेखन पर अनेक बार श्रेष्ठ सम्मान मिला है। कई सामाजिक साहित्यिक एवं संस्था के महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत नमिता घोष ‘राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड- २०२०’ से भी विभूषित हुई हैं।