दीप्ति खरे
मंडला (मध्यप्रदेश)
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नहीं कवि, न मैं हूँ लेखक,
न ही हूँ भाषा की ज्ञाता
भावों को पिरोया शब्दों में,
बस वही है मेरी कविता।
रस-छंद का ज्ञान नहीं,
अलंकार की पहचान नहीं
व्याकरण-वर्तनी मैं न जानूं,
बस मेरे जज्बात हैं कविता।
कला पक्ष और भाव पक्ष का,
मुझको नहीं तनिक भी भान
शब्द सागर से चुनकर मोती,
उन्हें पिरोकर बनती कविता।
गद्य-पद्य का मर्म न जानूं,
विधाओं को मैं न पहचानूं।
जो कहना चाहूँ मैं दिल से,
वही है बस मेरी कविता॥