ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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न जाने क्यों मेरे अरमान सोने लगे हैं,
मुश्किलों के दौर बेलगाम होने लगे हैं।
खौफ के मन्जर नज़र आते हैं मुझको,
न जाने क्यूं लोग बेईमान होने लगे हैं।
लगता है ख्वाब सजाना मुमकिन नहीं,
अब तो घर भी सुनसान होने लगे हैं।
विश्वास करना अब तो गुनाह हो गया है,
खुदगर्ज लोग अपना ईमान खोने लगे हैं।
चुनौती हो गया है अपने आपको बचाना,
मददगार भी अब तो हैवान होने लगे हैं।
कैसे बयां करुँ बेदर्द ए मुहब्बत का ग़म,
अपने ही अपनों से परेशान होने लगे हैं॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।